क्या पत्रकारिता भांड गिरी हो गई है या फिर सरकारों ने पत्रकारों को घेर रखा है ? चाटुकार आर्थिक और सम्मान से मजबूत
*पत्रकारों ने सबसे ज्यादा लग्न शीलता ऊर्जा इमानदारी से कार्य किया और कर रहे हैं*
*कोरोनावायरस संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए जनता को कॉर्पोरेट करने में महती भूमिका निभाने वाले पत्रकार सबसे बड़े योद्धा*
*समाजसेवियों से मदद लेने के लिए सबसे बड़ी महती भूमिका निभाने वालों में भी पत्रकार सबसे आगे*
*सही सूचना देने के लिए भी पत्रकारिता जगत के सभी सम्मानीय पत्रकार घर बैठे व्हाट्सएप टि्वटर फेसबुक के माध्यम से सही निष्पक्ष खबर देने में पत्रकार इं सबसे आगे योद्धा का कारण निभा रहे हैं*
*प्रेस प्रशासन पुलिस स्वास्थ्य विभाग नगर निगम एवं अन्य जगह कार्य करने में भी महती भूमिका निभाने वाले भी पत्रकार योद्धा*
*जहां पर पत्रकार नहीं है समझ लो वहां पर गोलमाल है चारों तरफ किसी भी विभाग में या किसी भी जगह पर समाज का चौथा स्तंभ से संसार डरता है इसीलिए भी पत्रकार योद्धा का होना बहुत ही जरूरी है*
*जहां पर भ्रष्टाचारी षड्यंत्रकारी व अन्याय करने वाले होते हैं वहां दूर-दूर तक पत्रकार दिखेंगे नहीं क्योंकि भ्रष्टाचारियों का नियम है कि समाज का कोई भी ईमानदार व्यक्ति उस पाखंडी जगह पर नहीं होगा जहां पर पत्रकारों से पर्दा हो रहा है समझ लो वहां पर खतरनाक तरीके से भ्रष्टाचारी हो रही है*
*आज भी मध्य प्रदेश में कई ऐसी जगह है वहां पर पत्रकारों को आने ही नहीं दिया जाता है मैं ऐसी जगहों पर नेता हूं या अधिकारी कुछ ही दिनों में जेल में पड़े मिलते हैं स्वतंत्र पत्रकारिता की बहुत बड़ी समाज में जरूरत है जैसे रामबाण का कार्य करते हैं पत्रकार योद्धा*
*भ्रष्टाचारी लोग कभी पुलिस की तारीफ तो कभी स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचारी वाले डॉक्टर उनकी तारीफ करने में थकते नहीं ऐसे भ्रष्ट लोग उनके लिए भी झूठा लिखना चालू कर दिया है ब्लैकमेल करने के लिए जिससे उन लोगों की छवि खराब हुई है मीडिया जगत कहो या पूरी लिस्ट विवाह का हो या स्वास्थ्य विभाग का गरीब मरीज की समस्याओं को छोड़ झूठे तारीफ करना कुछ मीडिया हाउस ने अपनी खुद की छवि खराब कर दिए वहां पर हमारे स्वतंत्र पत्रकार बहुत पीछे रहते हैं*
*10 जगह से जिम्मेदारियां छोड़ी झूठी तारीफ ना लिखने के लिए किसी संस्था में जुड़ कर रहना भी स्वतंत्रता पर खतरा इसलिए स्वतंत्र पत्रकार बनना सबसे बड़ी बहादुरी महावीर उसे भी बड़ा कार्य करते हैं स्वतंत्र पत्रकार इसे ही कहते हैं सही योद्धा*
*स्वतंत्र पत्रकार ही खुलकर किसी भ्रष्ट व्यक्ति के बारे में लिख सकता है किसी मीडिया हाउस में बैठकर सच्चाई लिखना अपने बच्चों को भूखे मारने के बराबर हर किसी के बस में नहीं है ऐसा साहस जो चोर को चोर बोल सके कुल मिलाकर भ्रष्टाचारियों की भी आज तारीफों के पुल वाले जा रहे हैं जिसकी वजह से राष्ट्र की जनता का जबरदस्त शोषण हो रहा है*
*देश की प्रजा की आवाज उठाने वाला आज अखबार कम ही नजर आते हैं भ्रष्ट नौकरशाह की तारीफ करने वाले और भ्रष्टाचारी की तारीफ करने वाले अधिकतर कुछ समय ही झूठी तारीफ छाप कर खत्म हो जा रहे हैं ऐसे भी सफाई होते नजर आ रहे हैं सच्चाई की बुलंदियों पर टिकना है तो जनहित में जनता की समस्याओं का निवारण करवाना ही होगा सरकार से भ्रष्टाचारियों की तारीफ करने के अखबार की एनर्जी गिरती नजर आई है*
*पिछले कुछ सालों से ज्यादातर अखबारों में भ्रष्टाचारियों की तारीफ के पुल बांधते हुए खबरें पढ़ने में आ रही है देश की प्रजा को पत्रकार लोग भूल गए हैं उनकी समस्या नहीं दिख रही है भ्रष्टाचारियों को छुपाने के लिए उनके गुलाम बनकर भी कार्य करने में लिफ्ट होने की वजह से बड़े बड़े अखबार धूल चाटते नजर आ रहे हैं कई पत्रकार तो भीख मांगने पर भी मजबूर हो गए हैं क्योंकि चलती पर उन्होंने भ्रष्टाचारियों की बहुत मलाई खाई अब खिलाड़ी वाले जेल में है और इनके हाथ में खाली कटोरा है*
*स्वाभिमानी वाले पत्रकार योद्धा आज भी समाज में गौरव बनाएं रखे है जिसके वजह से भ्रष्टाचारी षड्यंत्रकारी पर अंकुश लगा है हमें उसे बनाए रखने में भरपूर सहयोग करना है झूठी तारीफ मक्का रॉकी भ्रष्टाचारियों की चरणों में रहने से समाज एवं देश के लिए खतरा बन सकता है हमें ऐसे षड्यंत्र कार्यों से दूर रहने की बहुत बड़ी भारी आवश्यकता है*
*ग्रस्त होना ही पड़ेगा इसीलिए हमें निरोग रहने के लिए सभी जरूरतमंद प्रदेशवासियों को विशेष ध्यान में रखते हुए जनता का सपोर्ट भी ले और जनता का सहयोग करें यही विनती है यही निवेदन है*
दिनांक:- 5 2020
*👉हम न किसी से डरते हैं और नहीं किसी को डराते हैं, koइसलिए हम हर खबर डंके की चोट पर लिखते हैं!*
*✍निष्पक्ष पत्रकारिता कम चाटू खोर पत्रकारिता ज्यादा स्वतंत्र पत्रकार की क़लम से*
पत्रकारिता मैं झूठी तारीफ भ्रष्टाचारियों की स्टोरी की तारीफ अब बड़े अखबारों मेरी छपने लगी है*
*मुख्यमंत्री को प्रदेश के सभी छोटे बड़े पत्रकारों की सुध ले कर अविलंब ₹25000 का भुगतान तुरंत कर देना चाहिए यदि मध्यप्रदेश में सुख शांति समृद्धि और कोरोनावायरस को जड़ से मिटाना है तो सरकार को पत्रकारो का सम्मान बरकरार रखना पड़ेगा*
*देश के सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने प्रदेश में निष्पक्ष बिगर पक्षपात के सभी पत्रकारों को बहुत बड़ी अनेक सुविधाएं अभिलंब पिछले महीने में ही सहयोग कर दिया है इसलिए वहां पर कोरोनावायरस संक्रमण की समाप्ति प्रदेश में सुख शांति समृद्धि का माहौल स्थापित होना शुरू हो गया है हमें भी मध्यप्रदेश में सभी प्रकार के जरूरतमंद पत्रकारों को ₹25000 का विज्ञापन दिया जाए और तुरंत रिलीज ऑर्डर आरू का भुगतान करवा दिया जाए लोक डॉन खुलते से ही कुछ दिनों के अंदर छाप कर बिल भी लगवा दिया जाएगा उससे पहले रिलीज ऑर्डर का भुगतान हो जाना चाहिए यही विनती प्रार्थना है मध्यप्रदेश के पत्रकारों के प्रति गंभीरता से विचार कर सभी वर्गों के पत्र पत्रिकाएं को विज्ञापन दिया जाए माननीय मुख्यमंत्री महोदय से यही निवेदन एवं विनती है प्रदेश की शांति स्थापित करने एवं निरोग प्रदेश के लिए विज्ञापन एक बड़ा रामबाण का कार्य करेगा आने वाले कुछ महीनों में इसका रिजल्ट प्रदेश सरकार को देखने को भी मिलेगा ऐसा हमारे बुद्धिजीवी प्रदेश की प्रजा का मानना है कि जब तक जरूरतमंदों को सहयोग नहीं होगा अशांति एवं अनेक प्रकार के रोगों से
देश दुनिया पर हम पत्रकार लोग काफी कुछ लिखते ही रहते हैं लेकिन आज पत्रकारिता में लगातार आ रही मूल्यानुगत गिरावट और पत्रकार की निष्पक्षता, निष्ठा और बदलते वक्त में बदली कार्यशैली पर विमर्श अवश्यंभावी हो चला है।
बदलते समय के साथ परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है,
यह वैसा ही शाश्वत सत्य है जैसे कि जीव मृत्यु। पत्रकारिता ने बदलते समय के साथ बहुत कुछ देखा और सहा है;
परंतु पिछले 20 वर्षों में इसके मूल्य, सिद्धांतों में जितनी तेजी से गिरावट देखी जा रही है उतनी पहले तो नहीं रही होगी। पत्रकारिता का इतिहास पौराणिक काल में ब्रह्मर्षि पुत्र नारद जी से दृष्टिगोचर होता हुआ वर्तमान में "नककटुआ" की स्थिति में आ गया है।
हिंदी पत्रकारिता का इतिहास 100 साल से अधिक पुराना वैभवशाली, समृद्धशाली रहा है, इस कालखंड में अनेकों पत्रकारिता सपूत इस धरा पर जन्मे और अपने धर्म कर्तव्यों का पालन करते हुए परलोक सिधार गए। वह सब अमर होकर परलोक सिधारे।
किसी व्यक्ति विशेष का उल्लेख यहां नहीं किया जा सकता क्योंकि यदि किसी का नाम चर्चा में रहने से छूट गया तो प्रायश्चित करना पड़ेगा इसलिए पिछले 20 वर्ष में पत्रकारिता के पतित पावनी से लेकर पापी, पाखंडी, व्यभिचारी और वर्तमान में गोदी- सुपारी मीडिया बनने की चर्चा हम करते हैं। ऐसा हरगिज़ नहीं है कि भारत देश की पत्रकारिता बिल्कुल ही खत्म हो गई , कई नामचीन कलमकार अब भी ऐसे हैं जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की लाज बचाए रखने का कठोर संघर्ष कर रहे हैं। पत्रकारिता में मिलावटखोरी की प्रमुख वजह मूल उद्देश्य से नौजवान पीढ़ी का भटकाव माना जा सकता है, जो रातो रात बड़ा पत्रकार और धनवान बनने की सोच रखती है। दूसरी वजह अयोग्य अकुशल लोगों का क्षेत्र में अंधाधुंध प्रवेश है, जो यह मान कर आते हैं कि कम समय में शोहरत कमा कर काली कारगुजारियों को ढकने का अचूक मार्ग पत्रकारिता है। और तीसरी वजह इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और सोशल मीडिया है, जिन्हें पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों से ज्यादा टीआरपी की हवस होती है इसलिए किसी के हाथ में माइक आईडी पकड़ा दिया जाता है। एक वजह पत्रकारिता का मीडिया में खुद को तब्दील करना है, जिससे बड़ा नुकसान हो रहा है। टीवी चैनलों ने टीआरपी के चक्कर में अपनी विश्वसनीयता खो दी मगर देश की जनता का विश्वास अखबारों पर आज भी खत्म नहीं हुआ । लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली पत्रकारिता जितनी अखबारों में सुरक्षित है उतना ही खतरा उसे टीवी चैनलों से है। दरअसल, पत्रकारिता के मीडिया में बनने के इसी बदलाव के कारण पत्रकारों को राजनेता और सत्ता के तलवे चाटने पर विवश होना पड़ा या यूं कहें कि तलवे चाटने की आदत हो गई है । पत्रकारिता को "कारपोरेट मीडिया" निगल चुका है। यह कारपोरेट मीडिया औद्योगिक घरानों की नचनिया और सत्ता की कठपुतली बन गया है। भांड, दलाल और बिचौलिए इसी कारपोरेट मीडिया की फसल है । पत्रकारिता की दुर्गति के लिए पत्रकारों से ज्यादा बहुत हद तक सरकारे भी दोषी हैं जिन्होंने उसे समाप्त करने का मन बना रखा है। आज सरेआम पत्रकारों को गालियां इसलिए मिल रही है क्योंकि उन्होंने अपनी निष्पक्षता बेच डाली । स्व.प्रभाष जोशी, स्व.राजेन्द्र माथुर, स्व.मदन मोहन, स्व.गणेश शंकर विद्यार्थी, स्व.माखनलाल चतुर्वेदी , रविश कुमार, पुण्यप्रसून वाजपेयी, अभिसार शर्मा, आशुतोष, अंशुमान तिवारी,विजय शुक्ला सरीखे पत्रकारों से नौजवान पीढ़ी को सबक सीखने की आवश्यकता है जो सच की खातिर कड़ा संघर्ष झेल रहे हैं। वह पत्रकार कदापि नहीं हो सकता जो सत्ता की आंखों में आंखें डाल कर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं रखता। निष्पक्षता पत्रकारिता का आभूषण है और निडरता उसकी आत्मा। अफसोस यह दोनों बहुत कम देखने को मिलती है। पत्रकारिता रूपी सिंह की बिरादरी में आज कई गिरगिट, गीदड़ ,लोमड़ी और माफिया घुस आए हैं इसलिए समय आ गया है कि ऐसे बहुरुपियों को समाज स्वयं पहचान कर उनका तिरस्कार करे। क्योंकि पत्रकारों की कोई आचार संहिता नहीं है । पत्रकारिता धर्म का पालन तभी संभव है जब खुद को पत्रकार कहने वाला व्यक्ति निष्पक्ष, निडर और ईमानदार हो । अफसोस यह तीनों ही गुण अत्यंत कम पत्रकारों में रह गया है। सरकार सोचती है कि सच्चा पत्रकार या अखबार उसकी भक्ति गाथा का बखान करें उसके इशारों पर चले और जो यह ना करें उसे कुचल दिया जाए। अहंकार का भी एक समय नियत है । आज कारपोरेट मीडिया पत्रकारिता का सबसे बड़ा शत्रु है इसलिए पत्रकारिता का गला घोटने में वह सरकार के साथ है। पत्रकारिता के लिए यह बेहद मुश्किल दौर है। अखबार का प्रकाशन पूंजीपतियों के लिए आसान है क्योंकि अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं लेकिन निष्पक्ष अखबारों को आंगन में कुटिया छबा के भला कौन रखना पसंद करेगा ? अखबारों को चाहिए कि वह अपने धर्म की सुध लेकर कर्तव्य का पालन करें । निष्पक्ष और निडर होकर कार्य करें । महात्मा गांधी ने भी इसी मंत्र के सहारे अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था। अहंकारी सत्ता की क्या मजाल जो निष्पक्ष पत्रकारिता से लड़ पाए। सच्चा पत्रकार दो धारी तलवार पर चलता है और चलता रहेगा। उसके हिस्से में आलोचनाएं ज्यादा भले आती हैं मगर सच्चे पाठकों का सिरमौर भी वही होता है । समाज भी उसी की आवाज सुनता है और उसकी राह पर चलता है। यह समय सच के साथ खड़े रहने का है । पत्रकारिता समाज के प्रति जवाबदेह बने। पत्रकारों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए। सरकारों का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह निष्पक्ष निंदक पत्रकारिता, पत्रकार और अखबारों की रक्षा करे और उन्हें सम्मान की नजर से देखे। और इसकी आड़ में दुकान चलाने वालों को कड़ा सबक सिखाने में संकोच न करे। मगर एक ही चक्की के पाट पर सभी को रखकर पीसना कतई न्याय संगत नहीं होगा। निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले अखबारों एवं पत्रकारों को दलों में बांटकर यातनाएं देना हिंसक होगा।
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