केंद्र और राज्य सरकारें फैक्ट्री मालिकों से मजदूरों के लिए संवेदनाएं और मदद नहीं दिलवा पाए, इसकी वजह से घटी मजदूरों के साथ घटनाए
ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने अपने परिजनों के खाते में हज़ार दो हज़ार रुपये डाले थे ताकि वे घर आ सकें। क्योंकि कारखाना मालिकों ने उन्हें बिना वेतन दिए ही जाने को कह दिया। लेकिन आप यहां आगे एक इंसान द्वारा ही बरती गई नीचता पर गौर करिये। वहाँ कोई मैनेजर टाईप का व्यक्ति था जिसने उन लोगों से पैसे लिये कि वह खाने पीने की व्यवस्था करेगा लेकिन ऐसा क़ुछ नहीं हुआ। खैर आज ये फ़ोटो और वीडियो शेयर करने का मकसद है। आमतौर पर ऐसे वीडियो मैं शेयर नहीं करती क्योंकि किसी के दुख का तमाशा बनाना मुझे नहीं आता। इसके पहले एक बार शिवपुरी का वीडियो शेयर किया था जहां दबंगों ने दो बच्चियों को मार डाला था। परिजन रोते रहे पर तब की कांग्रेस सरकार के कारिंदे करीब एक हफ्ते बाद वहां पहुंचे थे। आज मकसद है..ये जो आर्त्तनाद है इसे हुक्मरानों तक पहुंचाइये। सिस्टम में बैठे कुम्भकर्णी नींद में भी सिर्फ जिन्हें ये सपने आते हैं कि पैसा कमाया किस योजना से जाए उन तक पहुंचाइये। ये उन अफसरों तक पहुंचाइये जिन्हें दूसरे राज्यों से मजदूरों को लाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दी थी और वे फोन बंद कर बैठ गए। ये देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचाइये जिन्होंने लॉकडाउन में बिना सोचे समझे सार्वजनिक परिवहन बन्द कर दिए। अरे 10 दिन का ही समय देते और कहते जिन-जिन को जाना हो अपने घर पहुंच जाएं। ये पहुंचाईये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उनके कारिंदों तक जो अपने ही राज्य के फैक्ट्री मालिकों से इंसानियत नहीं बरतवा पाए बाहरी मजदूरों के लिए। वैसे भी मुंबई के इस ठाकरे परिवार को दूसरे राज्यों के लोग पसन्द नहीं आते।
कल किसी ने लिखा कि मजदूरों ने लॉकडाउन क्यों तोड़ा? वे सड़क पर क्यों निकले? वे रेल की पटरी पर चल क्यों रहे थे? रेल विभाग तो कितनी बार बोलता है पटरी पार न करें वे तो सो गए क्यों? सवाल वाजिब हैं उन लोगों के। अब मेरा सिर्फ एक सवाल ऐसे लोगों से वे संतुष्टिदायक जवाब दे देंगे तो मैं हर मौत पर सकारात्मक रहूँगी अगर आप उस स्थिति में होते कि कारखाना मालिक ने निकाल दिया कह दिया जाओ अपने घर। न खाने को रोटी है न रहने को जगह। सार्वजनिक परिवहन सब बन्द जेब में पैसे नहीं तब आप क्या करते? पहला ख्याल तो यही आता न कि इस जिल्लत लानत मलानत से तो घर ही अच्छा पैदल ही सही पहुंच तो जाएंगे। सरकार पर सवाल उठाना उन्हें बहुत नागवार गुजरता है। यार आंखें खोलो इंसान हो कि नहीं हो? इंसान हो भी तो कुछ संवेदना बची है कि नहीं कि राजनीतिक पार्टियों के लिये ही कुत्ते-बिल्ली जैसे लड़ते रहोगे। वैसे एक कहावत तो सुनी ही होगी नींद न देखे बिछौना।
कल सरकारी समाचार सुन रही थी रेडियो पर बताया जा रहा था कुछ देशों से 400 भारतीयोंकि की सुरक्षित वापसी सरकार ने आज करा ली। इसमें गर्भवती महिलाओं बच्चों का विशेष ध्यान रखा गया। अच्छी बात है अपने लोग हैं सरकार उन्हें ले आई अपने घर पहुंच गए। अब ये बताईये कि सड़कों पर भी कई गर्भवती महिलाएं छोटे-छोटे बच्चे पैदल चल रहे हैं वे नहीं दिख रहे आपको? कई महिलाओं के तो प्रसव रास्ते में हो गए। उन्हें तो सिर्फ रेलगाड़ी की दरकार है जिसमें वे जानवरों की तरह ही भरकर घर तो पहुंच ही जायेंगे।
याद रखा जाएगा इस देश के दो सबसे बड़े राज्यों से ही मजदूरों की दुर्गति ज्यादा सामने आई है एक महाराष्ट्र दूसरा दिल्ली। जिन राज्यों को आमतौर पर पिछड़ा बोला जाता है वहां तो लोगों ने राह चलते मजदूरों के लिए रोटी पानी की व्यवस्था की, कर रहे हैं। हमारे पिछड़ेपन पर हमें नाज है विकसित राज्यों।
अब मजदूर सही सलामत घर पहुंच गए तो वे पलटकर नहीं देखेंगे क्योंकि उन्हें समझ आ जायेगा कि घर की आधी रोटी भली क्यों कहते रहे हैं बुजुर्ग।
योगी जी इस दौरान बहुत अच्छा काम कर रहे हैं पर पिछले दिनों महाराष्ट्र से ही बसों से मध्यप्रदेश आये उत्तरप्रदेश के मजदूर जब अपने राज्य की सीमा पर पहुंचे तो उन्हें सीमाओं के भीतर घुसने नहीं दिया।
और क्या-क्या लिखूं एक लाईन में बात इतनी सी है कि सरकार तो दोषी है पर उनसे भी ज्यादा सरकार के वो कारिंदे दोषी हैं जिन्हें कमाई के अलावा कुछ दिखता नहीं। जब जरूरत पड़े तो मोबाइल बन्द। हर राज्य पूरे देश में ये कौम ऐसी ही है। नीचता में यह पूरी सृष्टि को पछाड़ सकती है।
ऐसे हालात बनाकर पूरी मानवजाति की बलि देकर बंद कमरों में रकम का हिस्साबाँट कर अट्टहास करने वाली प्रजाति कभी मानवता के लिये पसीज नहीं सकती।
मजदूरों मरते हो मरो तुम्हारी यही नियति है। पर तुम्हारे मरने से तुम्हारे परिवार को सरकार इतना तो दे देगी कि तुम पूरी जिंदगी नहीं कमा पाओगे। शिवराज जी इस जमीनी हकीकत को जानिये।।आप तो संवेदनशील हुक्मरानों की श्रेणी में आते हैं। इस बीच याद आया कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लॉकडाउन के शुरुआती समय में घोषणा की थी कि हर राज्य को वे मध्यप्रदेश के मजदूरों के लिये राशि देंगे ताकि मजदूर दरबदर न हों उसका क्या हुआ?
सवाल बहुत सारे हैं हर राज्य हर सम्भाग हर जिले पूरे देश के सिस्टम और हुक्मरानों से हैं। जवाब नहीं मिलेंगे।।पर लोग जरूर आ जाएंगे समस्या के बजाय भाजपा कांग्रेस पर चर्चा करने।।ठीक उसी तरह जिस तरह द्रौपदी के साथ हुए अनाचार की बात करो तो लोग कौरव पांडवों की चर्चा करने लगते हैं। #मैं_ग़म_को_खुशी_कैसे_कह_दूँ......ममता यादव
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