भारत सरकार द्वारा दिया गया राहत पैकेज है या आहत पैकेज है, सरकार की कार्यशैली से देश की जनता हलकान

भारत सरकार द्वारा देश की जनता के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया गया है लेकिन इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में यह समझ में नहीं आ रहा है कि देश की 70% जनता के लिए कितना राहत पैकेज है और कितना उधार और इनका पैकेज है भारत सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने चार चरणों में इस राहत पैकेज की घोषणा की है जो आपके घर के आसपास के खंभे पर जुडी हुई उस सर्विस लाइन की तरह है जिसमें यह समझ पाना मुश्किल है कि इसमें आपकी राहत की लाइन कौन सी है? भारत की जनता पुरातन समय से ही भिखारियों की तरह रही है हमारी संस्कृति में ही भिक्षा मांगना गुरुकुल से ही सिखाया गया था। दूसरा यह कि भारत के बारे में कहा जाता है कि इसके सारे क्रियाकलाप भगवान भरोसे ही चलते हैं और होते हैं ,उसी तरह हमारा समाज और सरकार भी भगवान भरोसे ही चल रही है ,यह वर्तमान की परिस्थितियों को देखते हुए साफ नजर आ रहा है। मजबूर मजदूर विवस जनता कोरोनावायरस की वजह से जहां कराहा रही है ,वही परेशान भी है। देखने की बात यह है कि लॉक डॉउन की घोषणा जिंदगी घरों में रहने के लिए  की गई थी लेकिन लोग राह में सफर कर रहे हैं सरकार ने बार बार बोला है कि" घर पर रहें सुरक्षित रहें "लेकिन देश की जनता मानने को ही तैयार नहीं है और सड़कों पर पागलों की तरह निकल पड़ी क्योंकि वह अपने घर पर ना होकर दूसरी जगह रोजी रोटी के लिए भटक रहे थे और यह भटकाव उन्हें कोरोनावायरस तो नहीं लेकिन भूख प्यास और सड़क हादसों से जरूर मौत की ओर ले जा रहा है आज देश में लगभग 500 से ज्यादा मजदूर मौत को गले लगा चुके हैं ,सड़क हादसों में हुई दर्दनाक मृत्यु यह साबित करती है कि उनकी जान, जहान मे हमेशा जोखिम में है वह चाहे कहीं भी चले जाएं क्योंकि वह मजदूर है मजबूर हैं बेबस है और देश की जनता है ,लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है- तत्काल सुरक्षा और भूख मिटाने की कोई व्यवस्था सरकार के पास नहीं है राहत के नाम पर आदेश और निर्देश जरूर चर्चा में है लेकिन तत्काल कोई भी सहायता इस भूख प्यास बिलखती जनता के लिए मुश्किल साबित कर रही है। देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने जोराहत पैकेज दिया है उसमें से वास्तविक राहत 0.91 प्रतिशत ही वास्तविकता में है बाकी की राहत पैकेज ना होकर आहत पैकेज है, बाकी पैकेज में लोन और उधार का मामला साफ नजर आ रहा है। यदि सरकार से आप ऋण या उधार लेते हैं तो उसको आपको भविष्य में मय मूल ब्याज के साथ वापस करना होगा ,जिसके लिए भी बैंकों और सरकार द्वारा शर्तों का निर्धारण किया गया है और दूसरी बात यह हो रहा है कि सरकार ने जो दिवालिया की राशि ₹100000 रखी थी उसको अब बढ़ाकर ₹10000000 कर दिया है और यह राशि भी सरकार द्वारा 3 साल तक ना वसूली जाएगी ना कोई कार्रवाई की जाएगी ,इससे महसूस होता है कि सरकार की कार्यशैली कितनी कारगर और लोगों को राहत पहुंचाने वाली है?  मुझे एक यहां कविता याद आ रही है की समझ समझ के समझ को समझो ,समझ समझ के समझना भी एक समझ है, जो समझ समझ के ना समझे, वह मेरी नजर में नासमझ है। इसका अर्थ यह है कि भारत की जनता को भारतीय राजनीति और राजनीतिको के मंसूबों को अब समझ लेना चाहिए और अपने भविष्य का निर्धारण अतीत और वर्तमान की परिस्थितियों को देखकर करना चाहिए अन्यथा लूटने वाले लूटते रहेंगे और लूटने वाले लूटते रहेंगे। भारत की जनता को इस कोरोना महामारी की समस्या से निजात के लिए तत्काल की टिकट चाहिए थी ना की महीनों और सालों की बुकिंग की टिकट चाहिए थी ,उन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं थी ,उन्हें तत्काल ट्रेन में चढ़ने की जरूरत थी और अपनी मंजिल तक पहुंचने की जरूरत थी ।लेकिन लेकिन मजदूरों की मजदूरों की ना भूख मिटी और ना मंजिल ही उन्हें मिली।


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