समाचार पत्रों और पत्रकारों की समस्याओं पर भी ध्यान दें केंद्र सरकार और राज्य सरकार, क्योंकि विज्ञापन बंद आमदनी बंद

 देश और प्रदेश में कोरोना वायरस के कहर के आलम में स्वास्थ्य कर्मी पुलिसकर्मी एवं सफाई कर्मी जीजा ने करे हुए हैं वही अन्य कर्मचारी भी इस मुश्किल हालात में अपना योगदान दे रहे हैं केंद्र और राज्य सरकार ने स्वास्थ्य कर्मी पुलिसकर्मी एवं सफाई कर्मियों का ₹5000000 का बीमा कवरेज भी किया है अभी हाल में बिजली कर्मियों को भी ₹5000000 का कवरेज दिया गया है लेकिन संविधान के चौथे स्तंभ अघोषित को कोई आर्थिक पैकेज दिया बीमा कवरेज नहीं दिया गया है जबकि कोरोना वायरस के इन हालात में मीडिया कर्मी भी जी जान लगाकर सरकार और जनता के बीच की खबरों को जान जोखिम में डालकर कवर कर रहे हैं लेकिन ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकारों द्वारा इनके हालातों पर नजर रख रही है ना दे रही है बड़े ब्रांड ओके मीडिया कर्मी पत्रकार तनख्वाह और अन्य सुविधाएं पाकर अपने घर परिवार चला सकते हैं लेकिन छोटे मंजूर समाचार पत्र और पत्रकार की स्थिति बहुत ही गंभीर है देखने में आ रहा है कि इन हालातों में लग डाउन की वजह से आमदनी के उनके जरिए बंद से हो गए हैं ना होना कोई विज्ञापन मिल रहा है और ना ही कोई सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक कार्यक्रम ही हो रहे हैं जिससे उन्हें कोई विज्ञापन या सुविधा इनको आयोजित करने वालों से मिल सके मध्यप्रदेश में जनसंपर्क विभाग द्वारा पूर्व में छोटे मंजुले समाचार पत्रों को विज्ञापन दिए गए थे जिनका भुगतान भी अभी तक छोटे मजे ले पत्रकार समाचार पत्रों का नहीं किया गया है चर्चा है कि पूर्व सरकारों के इन विज्ञापनों की राशि लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए है जो भी अभी तक छोटे मंजूरे पत्रकार समाचार पत्रों को जारी नहीं की गई है यह मांग भी समाचार पत्र के मालिकों और पत्रकारों द्वारा समय-समय पर की गई है ओ की जा रही है लेकिन सरकारों के कान पर जूं नहीं रेंग रही है इसीलिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को छोटे मजी शोले समाचार पत्रों पत्रकारों की समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए इन मुश्किल हालातों में उनको परिवार पालने के लिए दो दो हाथ करना पड़ रहे हैं अतः केंद्र सरकार राज्य सरकार छोटे पत्रकारों के साथ ही छोटे मझोले समाचार पत्रों को भी आर्थिक पैकेज और 5000000 के बीमे का कवरेज दे जिससे उनकी मुश्किलें आसान हो सके क्योंकि विनोद दिन छोटे मझोले समाचार पत्र और पत्रकारों की हालात बढ़ते जा रहे हैं चर्चा है और बताया जाता है कि कुछ पत्रकारों के परिवार तो भूखे मरने की कगार पर आ चुके हैं लेकिन उन्हें केंद्र सरकार और राज्य सरकार उनका ही विज्ञापनों का भुगतान नहीं कर रही है वही समय-समय पर मध्यप्रदेश में इन छोटे मझोले समाचार पत्रों के मालिकों एवं पत्रकारों ने जनसंपर्क विभाग के सामने आंदोलन कर अपनी गुहार लगाई लेकिन सरकार अभी तक खामोश है जबकि जमीनी स्तर पर छोटे मझोले समाचार पत्र और पत्रकार ही जनता और सरकार के बीच छवि बनाने का काम करते हैं जो वह अभी भी बखूबी अपनी कलम के द्वारा धर्म का पालन करते हुए देश धर्म का कार्य कर रहे हैं यदि सरकार उन्हें कोई आर्थिक पैकेज और 50 लाख का बीमा कवरेज करती है तो वह सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते हैं जिससे सरकार की छवि धूमिल होने की वजह जनता के बीच निखर कर आएगी जिसका फायदा वर्तमान केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मिलेगा नहीं तो हालात बद से बदतर होते चले जाएंगे क्योंकि छोटे मझोले समाचार पत्रों और पत्रकारों के बीच आक्रोष जहां व्याप्त है वही उनको सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा यह बात मीडिया कर्मियों के बीच चल रही चर्चा से सामने निकल कर आ रहा है क्योंकि सरकार ने अभी तक इस ओर से अपनी आंख बंद कर रखी है।


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