घोड़ी पर होकर सवार दुल्हन चली यार लेने समानता का अधिकार

भोपाल के गुफा मंदिर में अपनी बेटी का सपना पूरा करने के लिए श्री दिनेश  लाहोटीीविशेष कार्यकर्ता विश्व हिंदू परिषद भोपाल ने बताया कि मेरी बेटी का सपना था शादी के वक्त दूल्हे के घर बरात घोड़ी पर सवार होकर लेकर जाए क्योंकि आज के समय में बेटी और बेटा एक समान हैं उनमें कोई फर्क नहीं किया जाना चाहिए तो मैंने अपनी बेटी अनु को सहमति दे दी और उसके सपने को पूरा करना हमारे लिए एक गौरव की बात है जब श्री लाहोटी से  पूछा गया कि  सुभद्रा नेभी अर्जुन को अपने रथ पर  विवाह के लिए ले गई थी  क्या आपने पढ़ा है सुना है  ? तो उन्होंने बताया कि हां पढ़ा सुना है  लेकिन ऐसा कुछ नहीं है  क्योंकि एक नई परंपरा है  तो हमने यही सोचकर ख्याल आया और बेटी को अनुमति दी बेटा और बेटी में फर्क क्या करना  उन्हें समानता का अधिकार दिया जाना चाहिए ऐसा मेरा मानना है वही दुल्हन बनी  अनुभि लाहोटी ने बताया कि मेरा जो ख्वाब  और सपना था कि मैं घोड़ी पर सवार होकर दूल्हे के घर जाऊं तो आज मैं जैन नगर से गुफा मंदिर तक घोड़ी पर सवार होकर पहुंची और जिनसे मेरा विवाह हो रहा है वह श्री भरत जी सोमानी उज्जैन से  है हमारी बारात उज्जैन जाएगी और  वहां विवाह संपन्न होगा वही दुल्हन बनी अनूूूभि की माताजी श्रीमती लाहोटी ने बताया कि जिस तरह हम अपने बेटों का लालन पालन करते हैं और उनके ख्वाब पूरे करते हैं वैसे ही बेटी का लालन-पालन किया जाना चाहिए उनके सपने पूरे किया जाना चाहिए क्योंकि दोनों हमारी संतान हैं और दोनों के ख्वाबों कोरसा को  साकाार करना हमारा फर्ज है बेटा बेटी दोनों को समान अधिकार प्राप्त करने का हक है जब उनसे समाज को संदेश देने का पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सारे अभिभावकों को अपने बच्चों को एक दृष्टि से देखना चाहिए और उनको समान शिक्षा समान लालन-पालन और सम्मान दिियाा जाना चाहििय  ।  उनके ख्वाब को साकार करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि उन्हें भी समाज में जीने का हक है और परिवार स्त्री सही चलता है हम अपने बच्चों का ख्वाब पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर हैं और हमने अपनी बेटी को अनुमति दी उल्लेखनीय है भारत के राजस्थान में एक परंपरा बरसों से चली आ रही है कि वहां दूल्हाऔर  दुल्हन घोड़ी या ऊंट पर सवार होकर गांव शहरोंं में बारात विवाह के समय निकलते हैं और घूमते हैं। फिर भी दुल्हहन काघोड़ी पर सवार होकर  बारात ले जाना  एक नई परंपरा है  और सराहनीय भी  बदलाव जरूरी है ।


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