भारतीय बजट अर्थव्यवस्था और दुनिया की वर्तमान स्थिति भारत अथवा इंडिया का निर्माण

 भारतीय अर्थव्यवस्था जहां अपनी मांग और पूर्ति की वजह से उलझी हुई है वही वैश्विक स्तर पर चल रहे घटनाक्रमों के बाद वर्तमान केंद्र सरकार के 5 ट्रिलियन  इकोनामी पर संदेह पैदा करती है वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की  विकास दर 4 प्रतिशत के लगभग है ऐसे में अभी-अभी केंद्र सरकार की वित्त मंत्री सीतारमण ने जो बजट पेश किया है जो बजट पेश किया है वह गरीबों की थाली  को जहां पूर्व की तरह ही दर्शाती है वही व्यापारियों और  किसानों के लिए दुगनी आय का स्वप्न दिखा रही है मुझे यहां साधु और शराबी की यह एक कहानी याद आती है जब एक शराबी शराब की दुकान से शराब पीकर सड़क पर चल रहा था तो रास्ते में उसे एक साधु मिला साधु और शराबी का आमना सामना हुआ साधु महाराज ने शराबी से कहा कि अरे भाई इतनी शराब क्यों पीते हो जब तुम  लड़खड़ा रहे हो इससे तुम्हारा शरीर भी नाश हो रहा है और  धन भी खर्च हो रहा है वही तुम्हारा परिवार भी तुम्हारी इस आदत से परेशान होगा शराबी ने कहा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है तब साधु ने  शराबी से पूछा  कि तुम कब से दारू पी रहे  तब शराबी ने कहा लगभग 30 साल से लगातार पी रहा हूं फिर साधु ने दूसरा प्रश्न किया ऐसे रोज कितना रुपया तुम शराब पर खर्च करते हो तो  शराबी ने बोला साधु महाराज लगभग ₹200 रोज खर्च करता हूं  साधु महाराज बोले यदि तुम यह ₹200 रोज बचाते तो आज तुम बीएमडब्ल्यू कार में घूम रहे होते और बढ़िया बंगला होता लेकिन तुम शरीर और धन दोनों का नाश कर रहे हो तभी पलट कर शराबी ने साधु महाराज से पूछा साधु महाराज आप साधु हैं और सन्यास लिया है आप कब से साधु सन्यासी हुए तो साधु महाराज ने कहा कि मुझे 40 50 साल हो गए हैं मैं सन्यासी हूं और बैराग लिया हुआ है दूसरा प्रश्न शराबी ने फिर किया साधु महाराज क्या आप शादीशुदा है महाराज ने शराबी का उत्तर दिया कि हां मेरा विवाह हुआ था लेकिन मैं गृहस्ती संभाल नहीं पाया और  उलझन और परेशानियों की वजह से मैंने यह सन्यास ग्रहण कर लिया तो आप तो शराब पीते नहीं है कोई व्यसन भी नहीं है फिर आप पैदल क्यों घूम रहे हैं ऐसे तो आपका बहुत धन बचा होगा क्योंकि आप ना कोई नशा करते हैं और ना आपके पास खाना खाने की जुगाड़ करने की जरूरत है आपको तो हर चीज भिक्षा में मिल जाती है  आपकी तो बचत ही बचत है साधु शराबी की यह बात सुनकर दंग रह गया यानी कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी कुछ साधु और शराबी के जैसी ही बनी हुई है दोनों के पास कोई विकल्प नहीं है दोनों एक ही स्थिति में घूम रहे हैं फर्क सिर्फ इतना है कि एक साधु है एक शराबी है दोनों अपनी अपनी जिंदगी मस्ती से जी रहे हैं। भाड़ में जाए दुनियादारी? यही हाल कुछ भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था की चल रही है आंखों पर पट्टी बांधकर देश की जनता और राजनेता  दुनिया की  हॉट और दौड़ में  लगे हुए हैं आवश्यकताएं बहुत हैं अपेक्षाएं भी बहुत हैं   महत्वाकांक्षा आएं भी बहुत है लेकिन देश का जो ताना-बाना है वह बहुत जटिल है इस देश में चाणक्य भी फेल है क्योंकि सामाजिक धार्मिक विषमताओं को वह भी नहीं समझ पाए वर्तमान देश और दुनिया की परिस्थितियां भी कुछ ऐसी ही हैं समांतर विकास इस देश और दुनिया में होना जहां असंभव है वही मुश्किल भी है लेकिन सत्ता दी लोकतंत्र और लोकहित में क्या कुछ नहीं कर रहे हैं यह इस बात से देखा जा सकता है कि वर्षों पूर्व जापान पर अमेरिका ने हाइड्रोजन बम से हमला कर जापान को तहस-नहस कर दिया था लेकिन इसके बावजूद जापान आज की तारीख में पूरी दुनिया से डेढ़ सौ वर्ष आगे चल रहा है क्योंकि वहां की जनता और नेता एक दूसरे की भावनाओं सहित अपनी सामाजिक सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता को साथ लेकर चल रहे हैं जापान में पैदा होने वाला बच्चा जहां राष्ट्र की संपत्ति है वही उसका पूरा ख्याल वहां की सरकार रखती है इसी वजह से वह विकास के मामले में दुनिया में नंबर वन पर है वही हमारा देश भारत पूरी दुनिया से 100 वर्ष पीछे चल रहा है जबकि देश आजाद होने के बाद से सभी नेताओं ने सत्ता हासिल करने के बाद देश को एक नई दिशा देने की कोशिश की और विकास के नाम पर जो चल रहा है वह सभी देख रहे हैं भारत का निर्माण हो रहा है इंडिया का निर्माण हो रहा है इसी बीच में बंद चल रहा है दूसरा जहां हम देश को विश्व गुरु बनाने की बात कर रहे हैं अपनी आंदोलन धार्मिक जाती समस्याओं को लेकर ही उधेड़बुन में लगे हुए हैं न सत्ता  संभालने वाले समझ रहे हैं और ना बुद्धिजीवी समझ रहे हैं ? देश में बनने वाली योजनाएं ना बजट के हिसाब से और नाही समय के हिसाब से बन रही है जिससे हर योजना की लागत दो से 10 गुना तक बढ़ जाती है क्योंकि दिनोंदिन महंगाई जहां बढ़ रही है वही मजदूरी भी बढ़ती जा रही है लेकिन उसका फायदा योजना बनाने वालों को ही हो रहा है जनता या देश को नहीं देश की कई योजनाएं बजट के अभाव में झूले की तरह झूल रही हैं या बंद पड़ी है जिस पर सत्ता देशों राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों को बैठकर मंथन करना होगा और समय अनुकूल एक व्यापक अर्थव्यवस्था के साथ योजनाओं का निर्माण करना होगा सभी देश की अर्थव्यवस्था और विकास संभव है


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