अंतरराष्ट्रीय दलहन कान्फ्रेंस में कृषि वैज्ञानिकको ने स्मार्ट दालों के उत्पादन की जानकारी की साझा डायरेक्टर डॉक्टर एनपी सिंह भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर

 मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र में ऐसी दलहनी फसलें तैयार हो रही हैं जिनको ना केवल दाल के रूप में उपयोग किया जा सकता है बल्कि इससे डिफेंस भी बनाई जा सकती हैं कृषि वैज्ञानिक इस स्मार्ट क्राफ्ट रूप में इनको तैयार कर रहे हैं जिससे स्मार्ट डालें बनाई जा सकती हैं वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि ऐसी दालों से पेट में पैदा होने वाली गैस जैसी बीमारियां भी रोकी जा सकती हैं वही वही डायरेक्टर भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के निदेशक डॉक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि हमारा संस्थान और वैज्ञानिक बेहतरीन दालों के गुणवत्ता के बीज तैयार करने जा रही है वहीं भोपाल में जो केंद्र खोला गया है उसमें ऐसी दलहनी फसलों का तैयार किया जाएगा जो सिर्फ उल्टी नियुक्ति ही नहीं बल्कि इन से होने वाली हानियों को भी रोका जा सकेगा एक प्रेस वार्ता के दौरान स्थानीय कोर्ट याद मेरी आई डी बी सिटी में डॉ सिंह ने बताया कि राजधानी में आयोजित किए गए इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय दलहन सेमिनार में भारत सहित बांग्लादेश अमेरिका ऑस्ट्रेलिया कनाडा सेवी कृषि वैज्ञानिक कौन है हिस्सा लिया उन्होंने आ गई है बताया कि जिंदल हवाओं में टॉक्सिन की मात्रा अधिक होती है उन पर भी काबू किया जा रहा है और ऐसे बीज तैयार किए जा रहे हैं जो मनुष्य के शरीर को फायदा पहुंचाएंगे और उन्होंने यह बताया कि आज भारत में मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो दुल्हन के मामले में नंबर एक पर है वही एक समय अरहर दाल की कीमत ₹200 थी जो अब घटकर 70 ₹80 तक आ गई है यानी दालों का आयात करना अब उचित नहीं है आयात पर टोटल रोक लग गई है दुल्हनों की फसलों की पैदावार देश में जहां बड़ी है वहीं उम्दा किस्म की दालों का उत्पादन भी कुछ समय में होने लगेगा अभी देश में दालों का उत्पादन 2.52 करो टन के रिकॉर्ड तक पहुंच चुका है दलहन उत्पादन में मध्य प्रदेश का 12% हिस्सा है वहीं वैज्ञानिकों के मुताबिक राज्यों में देवड़ा की बिक्री पर प्रतिबंध है लेकिन उत्पादन पर नहीं इसलिए देवड़ा कि ऐसे फसल तैयार की जा रही है जिससे मनुष्य को फायदा होगा इस अवसर पर 2 दर्जन से अधिक रिसर्च और रिपोर्ट पेपर वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित किए गए इस तीन दिवसीय आयोजन में लगभग 71 यूनिवर्सिटी ओके बुद्धिजीवियों ने वैज्ञानिकों ने शिरकत की


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