महंत श्री रविंद्रदास जी महाराज पीतांबरा बगलामुखी पीठ का 81 वा जन्म उत्सव मना

महंत श्री रविंद्र दास जी महाराज के 81 वा जन्म उत्सव मनाया गया भोपाल के मां पीतांबरा बगलामुखी मंदिर में महंत श्री रविंद्र दास जी महाराज का 81 वा जन्मदिवस बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया जन्मोत्सव पर संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें हिंदू धर्म अनुसार श्री आदि शक्ति मां के प्रदुर्भाव की महत्ता और उसके बाद महंत रविंद्र दास जी का जन्मोत्सव, तुलादान मंदिर तथा ट्रस्ट के कैलेंडर का विमोचन भी किया गया प्राचीन श्री आदिशक्ति महामाया पीतांबर बगलामुखी मंदिर के सचिव विनोद कुमार मिश्रा ने बताया कि  महंत श्री रविंद्र दास जी महाराज के जन्म उत्सव कार्यक्रम में मां  पीतांबरा बगुलामुखी मंदिर कोटला आयकर कॉलोनी में दूरदराज से आए कई महंतों ने धर्म के ऊपर अपने अपने विचार व्यक्त किए जिनमें डॉक्टर आरपी त्रिपाठी ने अपने विचार में बताया कि पीतांबरा बगलामुखी ब्रह्मास्त्र है जिसका उपयोग जब कल्याण के लिए देवताओं ने किया है पीला वस्त्र पीला फूल पीला भोजन भक्षण किया जाता है उसका पूर्ण फल प्राप्त कर आता है इस विश्व में अनंत विद्या है इन 10 विद्याओं में से पितांबरा एक बहुत कामयाब विद्या है जो कलयुग में अपना असर छोड़ती है देवताओं के कल्याणकारी इस पीतांबरा मां के विष्णु के आव्हान पर मां पीतांबरा अवतरित हुई जिसका वैभव सौराष्ट्र से शुरू होकर संपूर्ण जगत में है दूसरे गुरु अजन्मा होता है गुरु के रूप में इंद्रियों के वश में यह रहता है सतयुग में यंत्र त्रेता में मंत्र द्वापर में यंत्र और कलयुग में षड्यंत्र से काम होता है सर यंत्रों को करने की लिए मां पीतांबरा की साधना को  परिपक्व करना है संसार से जाने के लिए परमात्मा में विलीन होने के लिए जीव ने क्या साधना क्या तैयारी की है इस पर आत्ममंथन करना जरूरी है इस अवसर पर आर्यव्रत राष्ट्रीय अध्यक्ष गरीबदास राष्ट्रीय संयोजक वेदांत आचार्य पवनसुत दास जी मनीराम दास  जी उपस्थित थे एक महंत जी ने कहां की जीवा पर अंकुश के लिए मां पीतांबरा का अवतार हुआ है राजा भोज पाल  काल से पूर्व मां पीतांबरा की पूजा की जा रही थी सन 1958 में महाराज रविदास जी ने इस मंदिर पर आकर अपनी सेवा प्रारंभ की जो निरंतर आज तक चल रही है श्री रविंद्र दास जी को मां पीतांबरा साक्षात दर्शन देती हैं एक महंत जी ने एक कहानी का उदाहरण देते हुए बताया कि एक गुरु के 30 शिष्य थे वह शिष्य कोई गुरु की सेवा करता कोई भोजन बनाता कोई साफ सफाई करता इस तरह सब के काम बैठे हुए थे इन 30 शिष्यों में से एक्सेसिव की पुत्री का विवाह का समाचार उनको मिला तो उन्होंने कहा की पुत्री के विवाह में मैं कैसे क्या करूंगा जो अपने गुरु को बताऊं तो उन्होंने एक विचार आया कि क्यों ना गुरुजी को पुत्री के विवाह का निमंत्रण दूं जिससे गुरु मेरी मदद कर सके और उन्होंने गुरु जी को अपनी पुत्री के विवाह का निमंत्रण दिया उसी वक्त गुरुजी का एक भक्त उन्हें 5 किलो अनार की पेटी वेट कर रहा था उसी पेटी को गुरु ने अपने शिष्य को दे दी जिसे लेकर वह घर पहुंचे इससे उस शिष्य के अंदर संदेह पैदा हुआ कि अब मेरी बेटी का विवाह कैसे हुआ गुरु ने तो 5 किलो अनार मुझे दिए हैं उसी समय विचार करते-करते उस राज्य के राजा की पुत्री का एक समाचार शब्द प्रसारित हुआ की राजा की पुत्री को ऐसी बीमारी है जो किसी दवाई के साथ अनार के साथ देने पर और रोग मुक्त हो सकती है तब राजा ने धुलाई कराई अनार कहां मिलेंगे क्योंकि जिस राज्य में यश और गुरु रहते थे वहां दूर-दूर तक अनार पैदा नहीं होते थे जब राजा को पता चला एक मंदिर के आश्रम के किसी महंत के पास अनार है महंत अनार लेकर राजा के दरबार में पहुंचा और राजा ने वैद्य को वह अनार देकर अपनी पुत्री को दवाई खिलाई जिससे राजा की पुत्री दुरुस्त हो गई जब राजा को पता चला कि महंत  की पुत्री का विवाह है तो राजा ने कहा की जैसी  तेरी पुत्री है वह मेरी भी है और राजा ने कहा की संपूर्ण विवाह का खर्च एवं उसकी शादी में धूमधाम से करूंगा इसका आशय यह है कि गुरु की महिमा अपरंपार है गुरू पर संदेह करना  ठीक  नहीं है क्योंकि गुरु की महिमा कब क्या हो जाए उसका पता नहीं चलता है गुरु की संधि विच्छेद हम करें तो गुरु पूर्णिमा का अर्थ है जिसमें पूर्ण मां का अस्तित्व विराजमान है तो हमें गुरु के चरणों में अपना जीवन अर्पित कर देना चाहिए जिससे जीवन परम में विलीन होकर हर इच्छा को पूर्ण करता है जो श्री महाराज रविंद्र दास जी मैं मौजूद है।


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