आदिवासी महासम्मेलन रविंद्र भवन में शामिल होंगे 5 राज्यों के मुख्यमंत्री
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 7 और 8 फरवरी को जनजाति आदिवासी रियासतों के रजवाड़ों का सम्मेलन स्थानीय रविंद्र भवन में आयोजित होने जा रहा है इस सम्मेलन में भारत के 325 रियासतों को जो शामिल किया गया था उनमें लगभग 258 रियासत आदिवासी जनजातियों की थी इन रियासतों के जो राजा थे वह आज भी अपनी समस्याओं को लेकर संघर्षरत हैं इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत के निर्माण के समय जब इन 258 रियासतों को शामिल किया गया था इन रियासतों के साथ तत्कालीन सरकार और संविधान पीठ ने कुछ एग्रीमेंट किए थे इन एग्रीमेंट ओं की शर्तों के अनुसार देश में आज पर्यंत आदिवासियों के हक और अधिकार उन्हें नहीं दिए गए हैं और इन्हीं हक और अधिकारों को लेकर इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है इस सम्मेलन के आयोजक श्री नील करण राज ठाकुर हैं जो अपने संगठन के तत्वाधान में आदिवासी रियासतों रजवाड़ों को लेकर आदिवासियों की समस्या का समाधान का महामंथन करेंगे बताया जाता है कि इस सम्मेलन में देश के 5 राज्यों के मुख्यमंत्री जिनमें छत्तीसगढ़ झारखंड महाराष्ट्र उड़ीसा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिरकत करेंगे इस सम्मेलन में आदिवासी जनजाति संगठनों के अलावा रियासतों के राजे रजवाड़े शामिल होंगे और जनप्रतिनिधि भी शामिल होंगे इस सम्मेलन का उद्देश्य जहां आदिवासियों की समस्याओं को लेकर है वही राजनीतिक प्लेटफार्म पर जिन राजनेताओं ने अपनी रोटियां सेकी उनको भी दरकिनार करना है अब देखना यह है कि इस सम्मेलन का उद्देश्य किस हद तक पूरा होता है क्योंकि आदिवासियों के नाम पर केंद्र और राज्य सरकारों ने अरबों रुपए विगत 70 साल में खर्च किए हैं लेकिन नतीजा वही के वही शुन्य है कई आदिवासी अंचलों में नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है वही उनको जल जंगल जमीन से बेदखल करने की कार्रवाई सरकारों द्वारा की जा रही है इन्हीं कई बातों को लेकर यह सम्मेलन अपनी एक स्पष्ट रूपरेखा सरकार के सामने रखने जा रहा है और अपने हक और अधिकारों के लिए सरकार को सचेत करने जा रहा है देखना यह है कि सरकारें इस सम्मेलन पर अपनी कितनी नजर रखती है और आदिवासियों के हक और अधिकारों को अमलीजामा पहन आती है आदिवासियों के नाम पर कई एनजीओ और पूर्व के आदिवासी नेताओं ने बहुत मलाई खाई है लेकिन उनसे आज तक आदिवासियों का क्या विकास किया और हुआ है ना उसका हिसाब लिया है ना मूल्यांकन किया है जो अब सरकार को करना चाहिए क्योंकि आदिवासी समाज के साथ ही अन्य समाजों के नेता भी और समाज जागरूक होते जा रहे हैं जिसका जवाब सरकारों और जनप्रतिनिधियों को देना होगा।
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